हनुमान जी हमारे प्राण तत्व हैं. उन्हें पवन पुत्र कहा गया है जिसका अर्थ होता है साँसों के साथ बहती प्राण ऊर्जा. हनुमान को वानर रूप में दिखाना भी बहुत सुन्दर और काव्यात्मक ढंग है, एक गहरी बात को कहने का.
हनुमान, राम अर्थात परम चेतना से अनन्य रूप से जुड़े हैं और संयम, भक्ति व ब्रह्मचर्य का प्रतीक हैं.
प्राण ऊर्जा यदि असंतुलित हो तो वो तुम्हें वानर जैसा ही बना देती है – चंचल, उपद्रवी और कामवासना से पीड़ित. इस असंतुलन के कारण ही तुम अपनी परम चेतना से दूर हो जाते हो. अब ध्यान के द्वारा जब हम साँसों पर प्रयोग करते हैं तो यह प्राण ऊर्जा को संतुलित करने की ही प्रक्रिया होती है.
संतुलित और समस्वरित होकर यह प्राण ऊर्जा हनुमान जैसी हो जाती है. कामवासना तब एक छलांग लेती है और प्रेम के शुद्धतम रूप, भक्ति में बदल जाती है.
भक्ति का इतना ही अर्थ होता है कि अब तुम अपने भीतर के चैतन्य में डूब गए हो. तुम्हारी प्राण ऊर्जा जब अंतर्मुखी होकर गहन आंतरिक स्थिरता और मौन के केंद्र में रम गयी है, वही भक्ति है.
राम है तुम्हारे भीतर की वह चेतना जिसमें रम जाने के बाद सारी खोज समाप्त हो जाती है. इसीलिए हनुमान खोज और खोज की समाप्ति का माध्यम बनते हैं.
बिखरी हुई व असंतुलित प्राण ऊर्जा निरंतर किसी न किसी खोज में लगी रहती है और प्रत्येक खोज वासना की ही खोज है. और जब प्राण ऊर्जा को ध्यान के माध्यम से संतुलित कर दिया जाता है, तब अखंड होकर अपनी आंतरिक शक्ति को अंतिम रूप से खोज लेती है और उसके साथ ही व्यक्ति की सारी खोज समाप्त हो हो जाती है, वो रामराज्य में स्थित हो जाता है.
रामराज्य का अर्थ है परम चेतना का राज्य – आनंद, शांति, शुभ, सत्य और सौन्दर्य का राज्य.
Naman Prabhu
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