कुछ दिल की बात

“कुछ दिल की बात”

    मुझे बोधि कृष्णा जी की लगभग पचास साठ कविताएँ पढ़ने का अवसर मिला है. हृदय की गहराइयों की इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति मुझे अन्यत्र देखने में कम ही नज़र आई है. ऐसा नहीं की मैंने बहुत पढ़ा है और कविताओं की विशेष समझ है पर कविताओं से मेरा नाता ज़रूर रहा है और वो मुझे स्पर्श करती रही हैं. और फिर जो कविता हृदय को छू जाये उसमें कुछ न कुछ तो बात है ही.

     एक कवि ने अपनी कविताओं के लिए कहा है–

“मैंने कविता को शिव की जटा से निकली हुई गंगा के समान पवित्र और ॐ के समान उदात्त माना है. उसकी करुणा, उसका सौहार्द और उसकी संवेदना हृदय का प्रक्षालन करती हुई मनुष्य को एक अपार्थिव धरातल पर पहुंचा देती है जहाँ मानवता का अर्थ समझ में आता है और जहाँ हम ज़िन्दगी की रहस्यमय गहराई का स्पर्श भी कर लेते हैं.”——–सुरेश कुमार

इस दृष्टि से जब मैं बोधि जी की कविताओं को देखती हूं तो उनकी पहचान और सुन्दरता और उभर के आती है. कुछ पंक्तियाँ कुछ एक कविताओं की जो सरलता से उपलब्ध हो सकीं उन्हीं को यहाँ पर स्पर्श करती हूं—

“स्त्री कितनी रहस्यमय है, उसके रहस्य में प्रवेश करते हुए वह कितना सुन्दर कहती हैं-“

स्त्री रहस्य है,

रहस्य की यात्रा,

और सबके ह्रदय में  

एक गहरे रहस्य की तरह

शामिल रहती है.

 

“फिर कहीं पर लोग बात तो अच्छी अच्छी करते हैं पर जीवन में वह नज़र नहीं आतीँ, इसको कविता में कितनी सादगी से उतारा गया है–“

शब्द सजाना
एक बात है,
उनको जीना
अलग बात है.

 

“प्रेम की ऊंचाई को छूने के दरमियाँ एक प्रेमी कितनी सामाजिक यातनाओं से गुज़रता है उसको दिल की गहराइयों से कहा गया है –”

प्रीति के गगन में
अनवरत उठती रही,
इसलिए ही जग की
आलोचना, अवहेलना,
कटुता,यातना
चुपचाप सहती रही …

 

“व्यवहारों की विडम्बना पर कटाक्ष कितना सटीक है —“

वस्तुएं उपयोग के लिए हैं
और इन्सान प्रेम के लिए…
लोग वस्तुओं से प्रेम करने लगते हैं
और इंसानों का उपयोग…

 

“ज़िन्दगी को समझने और बनाने में लगे लोगों के लिए कितने सरलता से कहा गया है –“

उसे तो सिर्फ
जिया जा सकता है
उसी की तरह
निर्बंध व निस्सीम होकर …

 

“एक साधक का गुरु के साथ चलना कितना बड़ा जुआ है —“

कठिन है बहुत
चलना किसी बुद्ध के साथ
जैसे लपलपाती आग …
जलना,मिटना,वेदना
अनेक अनेक पड़ाव…
फिर फिर उघडते हैं
जन्मों के घाव,
यह चलना है ऐसे ही
जैसे गहरा दाँव..

“और फिर प्रेम की इतनी पवित्र अभिव्यक्ति है जो हृदय को  झंकृत करती है, आँखों को नम करती है और व्यक्ति को एक गहरी आशा से भर देती है, इसकी ख़ूबसूरती अदभुत है –“

और जिस बोधिवृक्ष के नीचे
तुम अलौकिक आभा से
भरके आलोकित हो गए थे,
उस बोधिवृक्ष के पत्ते पत्ते पे
निस्तब्ध ठहरी
तुम्हारे लिए मेरी
प्रतीक्षा ही तो थी…

 

यह कवितायेँ जैसे हृदय के निर्झर से फूट कर बह निकली है, और हर प्रेमी हृदय को छूती हुई और उसको अपने में समाती हुई बढ़ रहीं हैं, अज्ञात से अज्ञात की ओर ….

इनका असर मेरे अन्तःकरण में कुछ समय से बादलों की तरह उमड़ घुमड़ रहा था और बरसने को बेताब था इसलिए मैंने अपने हृदय को एक मौक़ा दिया और यह बरसात हुई. यह केवल उस असर की वजह से ही मैं इस बरसात की कुछ बूँदें संजो पाई हूं.” 

-अनन्त प्रतीक्षा

 

This Post Has 2 Comments

  1. परमवीर

    एक अहोभाव….. कहने और सुनने वाले के प्रति….. सादर प्रणाम दी……🩵🩵🩵🩵🥰🤗🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾

  2. अनीता

    ❤🙏❤
    ❤बहुत सुन्दर

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