अस्तित्व नृत्यमय है। यहाँ प्रत्येक कण सतत नृत्य में डूबा है। पूरी पृकृति नृत्य में डूबी है। भारत में भगवान श्री कृष्ण और शिव को नृत्यमय दिखाया और उन्हें योगेश्वर भी कहा है। अर्थात योग की आत्यंतिक अभिव्यक्ति नृत्यमय है।
यह नृत्य एक भावदशा है। नृत्य जीवन की लयबद्धता की प्रक्रिया है। जब तुम नृत्य में डूबते हो तो तुम्हारे भीतर भी एक लयबद्धता उतरने लगती है। और जब लयबद्धता उपलब्ध हो जाती है तब बाहरी नृत्य की आवश्यकता भी खो जाती है।
प्रत्येक नकारात्मक भाव लयबद्धता का अभाव है। तुम जब भी नकारात्मकता से भरे होते हो, तो उसका इतना ही अभिप्राय होता है कि तुम जीवन की लयबद्धता में नहीं हो। तुम्हारा शरीर,मन और चेतना एक लय में नहीं हैं। ऐसे में तुम बाहरी नृत्य का ध्यानपूर्वक उपयोग कर सकते हो।
धीरे-धीरे नृत्य में प्रवेश करो और अपनी प्रत्येक हलचल के प्रति सजग बने रहो और तब धीरे-धीरे तुम्हारे भीतर भी एक लय उतरने लगेगी। नृत्य कई तलों पर घटित होता है, शरीर,मन और चेतना के समस्त तलों पर। श्रेष्ठ नृत्य वही है जो अकारण है, निरुद्देश्य है, स्वतःस्फूर्त है।
नृत्य का श्रेष्ठतम रूप वही है, जब वो दिखाई भी न दे किन्तु अहर्निश चल रहा हो, वही है परमात्मा का नृत्य।
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नमन प्रभु 🙏
आपको सुनते हुए अक्सर एक आंतरिक नृत्य का अनुभव होता है जैसे भीतर कण कण खुशी से नाच रहा हो।
ये स्वतः स्फूर्त नृत्य कभी बाहर भी प्रकट हो जाता है।
ये विस्मयकारी और आनन्दमय अनुभव है ।
Pranam Anant sri
नृत्य के गरिमा का आपने बहुत गहराई से विवेचन किया है नृत्यमय होने से हम आंतरिक लयबद्वता का अनुभव कर सकते है यह एक साधना का ढंग भी है
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नमन प्रभु 🙏
आपको सुनते हुए अक्सर एक आंतरिक नृत्य का अनुभव होता है जैसे भीतर कण कण खुशी से नाच रहा हो।
ये स्वतः स्फूर्त नृत्य कभी बाहर भी प्रकट हो जाता है।
ये विस्मयकारी और आनन्दमय अनुभव है ।
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