गणेश जी प्रेम और भक्ति के प्रतीक हैं

गणेश जी प्रेम और भक्ति के प्रतीक हैं- Anant Sri

हिन्दू ऋषियों ने अद्भुत प्रतीक गढ़े हैं. प्रायः ये प्रतीक बहुस्तरीय हैं, अर्थात उनके अलग – अलग स्तरों पे अलग – अलग अर्थ हो सकते हैं. ऐसा ही एक सुन्दर प्रतीक है गणेश जी का. उनका धड़ इन्सान का है और सिर हाथी का, भारी  शरीर के साथ चूहे की सवारी. ये सारा प्रतीक बेबूझ और तर्क से परे है.

गणेश जी तर्क से परे, अतर्क्य का प्रतीक हैं. चूहा तर्क का प्रतीक है जो बस कुतरता रहता है, कभी प्रयोजन से और प्रायः बिना किसी प्रयोजन के. लेकिन यहाँ तर्क को व्यर्थ समझ के छोड़ा नहीं गया है बल्कि उसे अतर्क्य का वाहन बना दिया गया है.

तर्क का भी उपयोग अतर्क्य में प्रवेश के लिया किया जा सकता है और किया जाना चाहिए, यही देशना इसमें छिपी है.

यह बुद्धि और ह्रदय के संतुलन का प्रतीक है. इसी संतुलन से जीवन के सारे कष्ट और विघ्न समाप्त होते हैं, इसीलिए गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा गया है.

अब यदि जीवन में विघ्न समाप्त करने हैं और शुभ के जगत में प्रवेश करना है तो चूहे जैसे तर्क को छोड़ना नहीं है बल्कि बिना किसी प्रयोजन के कुतरने की वृत्ति को छोड़कर, उसे सजगता से उपयोग करके, अतर्क्य अर्थात विराट की यात्रा में गति करनी होगी.

जीवन में तर्क व्यर्थ नहीं हैं अगर वो अतर्क्य की ओर ले जाने में सहयोगी हो जाये. और अतर्क्य ही ह्रदय की भाषा है. यहीं से प्रेम की किरणें निकलती हैं और भक्ति के सूर्य में बदल जाती हैं. इसीलिए गणेश जी प्रेम और भक्ति के अनन्य प्रतीक हैं.

This Post Has 3 Comments

  1. अनीता

    ❤🙏❤

  2. Piku samanta

    Love & gratitude 🌹🌷🌷🌹🌺

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