व्यवसायीकरण होना जब प्रारंभ होता है, तब हर चीज का हो जाता है. ऐसे में यदि गुरुओं का भी व्यवसायीकरण हो गया है तो कोई आश्चर्य नहीं.
गुरुओं का व्यवसायीकरण तब प्रारंभ होता है जब लोग गुरुओं के बोध के बजाय उनकी सफलता, उनकी चमक, उनकी प्रसिद्धि और उनके चारों ओर इकठ्ठी हो गयी भौतिकता को देखकर चलने लगते हैं. इस सब को देखने की आवश्यकता नहीं है, ये तो केवल उप-उत्पाद (by product) हैं. एक व्यक्ति जब अपने होने में स्थित होता है और तथाता में जीने लगता है तब सारे संसार का ऐश्वर्य खिंचकर उसकी तरफ आने लगता है.
ऐसा देखकर कुछ लोगों को लगता है कि यह तो बहुत आसान है कि गुरु हो जाया जाये. इसमें करना तो कुछ नहीं है, बस कुछ प्रवचन देना सीख लेना है या बस लोगों के लोभ और भय को हवा देना है, ये सब तो बड़ा ही आसान मामला है. ऐसे लोग उस केंद्र को पूरी तरह चूक जाते हैं जहाँ से गुरु का जन्म होता है, जहाँ से उसका प्रारंभ होता है.
लेकिन इस सबसे एक सत्य के खोजी को विचलित नहीं होना चाहिए. ये तो मांग और आपूर्ति का जगत है. जब मांगें गलत होंगी तो उनकी आपूर्ति करने वाले लोग भी पैदा हो जायेंगे. अब ये न कहें कि सद्गुरु तो सच्चा ही होता है. बाज़ार में गुरु के नाम से जो भी उपलब्ध है वो सद्गुरु नहीं है. नामों से और बातों से और बाज़ार से परे जो है, वही सद्गुरु है. ये तो चलता ही रहेगा.
लेकिन जिसके भीतर प्रामाणिक प्यास पैदा हो गयी है, जो अब भय और लोभ की मांगों से बाहर हो गया है, उसके लिए सच्चा सद्गुरु प्रकट होता रहेगा.
आभार प्रभू 🌻🙏🌻
नमन सद्गुरु 🪷❤️🥀🌺🌹🪴🌴🌾🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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Naman tathagat sadgurudev.🌺🌹🩵💕💛💚🤍🤎💙💜🧡
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