अध्यात्म आंतरिक जगत का विज्ञान है. यह आंतरिक विज्ञान बाहरी विज्ञान से एक बिंदु पर पूरी तरह अलग हो जाता है. बाहर के विज्ञान में जब एक बार कोई खोज कर ली जाती है तो वो खोज पूरी हो जाती है और अब कोई भी उसका उपयोग कर सकता है…
लेकिन अंतर्जगत के विज्ञान में तुम्हें बार-बार उसे खोजना पड़ता है. जैसे किसी ने जगत में पहले प्रेम किया है, तो इससे तुम्हारे जीवन में कोई अंतर पड़ने वाला नहीं है. तुम्हें फिर से प्रेम खोजना पड़ता है. किसी ने पहले स्वयं को जाना है, स्वयं को उपलब्ध किया है, इससे कोई अंतर तुम्हारे ऊपर नहीं पड़ता. तुम्हें फिर से स्वयं को खोजना पड़ता है, जानना पड़ता है.
अकेले ही स्वयं के अन्दर उतरने का गहरा साहस और अपने भीतर से सारे विश्वास, सारी धारणाएं, सारे पूर्वाग्रह और सारा बाहर से ओढ़ा हुआ उधार ज्ञान विलीन कर देना, यही है अनंत पथ की विशुद्ध आध्यात्मिकता.
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बहुत सुन्दर ज्ञान।सादर नमन अनन्त श्री।🙏🕉️🙏
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My mystic seer
your esoteric texts are a medicinal wonderment to tormented thoughts ..
Lead us on this path..(even as you are ) ..the only one ..
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