मन मृत्यु को बहुत भयानक अनुभव के रूप में अनुवादित करता है, ठीक भी है, उसकी अपनी मर्ज़ी पर अगर मनुष्य अपने को मन से थोड़ा सा अलग हट के देख सके तो मन की नीतियां, चालें, भय आदि कुछ-कुछ समझ आ जाते हैं पर हम चूंकि मन ही हो चुके हैं इसलिए इससे हट पाना बहुत कठिन जान पड़ता है और मेरे अनुमान में अनंत श्री जिस fictional ego/mind की बात करते हैं, कहानी बुनने वाला, वह यही है।
मृत्यु इसी fictional की कहानी है, इसी से जन्म पाती है और जैसे हर कहानी का एक अंत भी निश्चित है वैसे ही इस कहानी का प्रारंभ जन्म और सारांश मृत्यु के रूप में प्रकट होता है, पर चूंकि मनुष्य मन मात्र ही है और मन बचपन से ही कहानियों में बहुत रूचि लेता है अत:वो कहानी के अंत से, उसके संहार से सदा आतंकित बना रहता है। वह कभी नहीं चाहता कि इस कहानी का अंत हो।
अनंत श्री की उपस्थिति में ध्यान के दौरान अधिकतर साधकों को महसूस होता है कि वो निद्रा में एक तंद्रा में चले गए हैं, शब्द खो से गए हैं मुझे इसका कारण लगता है कि मन थोड़े समय के लिए कहानियां बुनना बंद कर देता है और एक अल्पकालीन मृत्यु को उपलब्ध हो जाता है, इससे ऊर्जा का संरक्षण होने लगता है इसलिए मन इतना मुक्त हो जाता है की बची हुई ऊर्जा का प्रयोग सचेतन होने में करने लगता है, वह इससे बच नहीं पाता और इसका पता चलता है जब ध्यान के अंत में अनंत श्री की प्रेमिल एक ही आवाज में सब करवट ले बैठना शुरू कर देते हैं, पर थोड़ा सा सचेत रहें तभी इस पूरे घटनाक्रम का पता लग पाता है।
कुछ ऐसा हम सभी में है जो गहन निद्रा में भी जागा रहता है, सचेत रहता है और जिसको इस निद्रा का भी पता चलता है की हां नींद छाई हुई है, बस वही जिसको सब पता चलता है जो दुनिया की भाग दौड़ में छिप गया है, वही जब खुद को जान लेता है तो बुद्धत्व को उपलब्ध कहलाता है, साक्षी कहलाता है। अनंत श्री में ये तत्व सौ प्रतिशत जागृत है, जो मृत्यु की पकड़ से बाहर है, जिसे जान लेने से चारों स्तंभ प्रकट हो जाते हैं, अभय का वर मिल जाता है और जिसे सब में बाँटने के लिए अनंत श्री व बोधि माँ इतना श्रम उठाते हैं।
अगर अनंत श्री के साथ बीते हर क्षण का मनन करें तो वो अविनाशी तत्व सहज ही पकड़ में आ सकता है। वही हम सब में सुषुप्त अवस्था में पड़ा है और गुरु सत्संग में ही जाना जा सकता है। नानक हों, कबीर हों, बुद्ध हों चाहे कोई भी सिद्ध सभी एकमत से गुरु की जीवंत उपस्थिति को अनिवार्य मानते हैं। हम सब परम सौभाग्यशाली हैं जो एक जीवित – बुद्ध के इतना समीप आ पाते हैं,बात कर पाते हैं, साथ में हंस बोल पाते हैं और सदा अनभिज्ञ बने रहते हैं कि एक चैतन्य-बीज जिसका अनंत श्री बड़े प्रेम से हम सब के हृदय में रोपण कर देते हैं।
थोड़ा धैर्य और साथ चल सकने का साहस बस जल्द ही एक कोपल फूटेगी, तब पता चलेगा मैं जन्मा ही नहीं तो मरेगा कौन। दोनों, जन्म और मृत्यु साथ-साथ चले जायेंगें। मृत्यु जो आज तक के भयों का भय था एक क्षण में ऐसे गायब हो जाती है जैसे रात एक भयानक स्वप्न मात्र देखा था और जो अब कहीं नहीं है।
हम सभी साधक मित्र सदा अनंत श्री के साथ उनके दिखाये अनंत पथ पर ऐसे ही निर्भीक सिंह शावकों की भाँति चलते रहें ऐसी मेरी परमात्मा से प्रार्थना है।