भय से प्रेम की ओर

भय से प्रेम की ओर- अनंत श्री

भय के साथ ही लोग पैदा होते हैं, भय में ही जीते हैं और भय में ही मर जाते हैं। भय का विपरीत प्रेम है लेकिन उस प्रेम को शायद ही कोई जानता है। जो प्रेम भय को विलीन करता है वो तुम्हारे समाप्त होने पर ही उत्पन्न होता है। तुमने अपने को जो मान रखा होता है उसके समाप्त हुए बिना इस प्रेम का जन्म होता ही नहीं। यह तुम्हारे क्षद्म स्व के मिटने पर ही प्रकट होता है।

और प्रत्येक व्यक्ति अपने इसी होने के मिटने से भयभीत है, क्योंकि इस होने के सिवा और किसी होने की तो पहचान ही नहीं है। इसी भय से घबराकर व्यक्ति ने अपनी ही तरह का प्रेम, परमात्मा और जाने क्या क्या रच डाला है। वस्तुतः व्यक्ति का प्रेम और परमात्मा और उनसे संबंधित सारी बातें भय का ही एक रूप हैं।

व्यक्ति की प्रत्येक कोशिका में मिटने का भय समाया हुआ है। जब तक इससे मुक्त नहीं हुआ जाता तब तक किसी प्रेम या परमात्मा की कोई संभावना नहीं है। इस भय के कारण ही तुमने हर चीज पर अपनी पकड़ बना रखी है, पत्येक प्रकार की पकड़ को विदा करना होगा और इस भय का एक बार पूरी तरह सामना करना होगा। सुरक्षा के सारे आयोजन और आकांक्षा को हटाकर भय में उतरना होगा, चाहे जितना प्राण कंपित हों लेकिन अपने को जो मान रखा है उसे मिट जाने देना होगा और तभी प्रेम का शुद्ध प्रकाश प्रकट होगा। इस प्रकाश में किसी परमात्मा की कोई आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि तब उसके सिवा और कुछ होगा ही नहीं।

This Post Has 3 Comments

  1. अनीता

    ❤🙏❤

  2. अनीता

    नमन प्रभु 🙏
    हमारे जीवन में भी प्रेम का शुद्ध प्रकाश प्रकट हो।
    इतनी सरलता से ऐसी मूल्यवान समझ आपके माध्यम से हमें मिलती है,।आस्तित्व की अनुकम्पा है।
    इस समझ को हम आत्मसात कर पाये और अपने जीवन में उतारे इसका पूरा प्रयास रहेगा।आपको सुनते कई बार इसकी झलक भी अपने जीवन में पाते है। अहोभाव प्रभु।🙏

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