अनंत श्री के साथ अनंत पथ पर चलना एक रहस्य के साथ चलना है। इस यात्रा में उल्लास और उत्साह निरंतर साथ में चलते हैं। अनंत श्री निरंतर बात करते हैं शांति, प्रेम, प्रसन्नता, समस्वरता की, जिसके प्रकाश को अपने साथ ही अनंत पथ के सभी मित्रों के भीतर प्रकट होता और लगातार बढ़ता हुआ मैं महसूस कर सकता हूँ। अनंत श्री एक शब्द अक्सर प्रयोग करते हैं synchronicity , ये बड़ा ही गहरा शब्द है पहले मैं इसे नहीं समझता था पर जब मैंने पीछे लौट कर अपनी जिंदगी को देखना शुरू किया तब इसका अर्थ कुछ-कुछ मैं समझ पाया जैसे अनंत श्री का video पहली बार मेरे सामने उस समय pop-up हुआ जब मैं अपने कमरे में ध्यान में बैठता था और अनेकों अनुभवों से गुजरता था। मुझे लगता था वाह! मैं ध्यान में उतर रहा हूं लेकिन जब मैंने वो video open किया जिसमें अनंत श्री कह रहे थे कि ध्यान अनुभव के पार हो जाना है, पर मैं उस चीज पे यकीन नहीं कर पा रहा था फिर मैंने अनंत श्री के सभी videos को धीरे-धीरे सुनने लगा। मैंने लगभग उनके सभी videos सुने हैं। उनकी बातें बहुत सरल लगने लगी और धीरे-धीरे मुझे समझ आया कि अनुभव हमारे सीमित मन का हिस्सा हैं और हमारा होना एक असीम चेतना है। असीम चेतना जब सीमित मन में प्रकट होती है तो सारे परदे गिर जाते हैं और हम असीम ही हो जाते हैं, और वही है हमारा होना। इस होने की अभिव्यक्ति, अनंत श्री कहते हैं शांति, प्रेम, प्रसन्नता और समस्वरता के रूप में होती है।
जब मैं पहली बार अनंत आया और अनंत श्री से मिला तो मैं वहां टिक नहीं पा रहा था। उस समय unusual satsang होता था अनंत में, पर मैं lucknow में रह कर भी नहीं जाता था। अनेक बहाने मैं खुद पैदा कर लेता था न जाने के अपने ही मन में और उसी के सहारे मैं जाता भी नहीं था, पर एक दिन अचानक उनका एक और video आया गुरु के ऊपर, तब मैंने उस मन से परे हट कर जाने का सोचा और जाने लगा। धीरे-धीरे मैं जब जाने लगा तो मेरी conditioning बदलने लगी फिर कुछ तो मैं अपने में बदलने जैसा देख पा रहा था और मैं उस शांति को भी महसूस कर पा रहा था। तब मुझे पहली बार लगा कि मेरा जाना मेरी इच्छा अनिच्छा नहीं थी, बस अस्तित्व की एक लीला थी जिसे वैसे ही होना था। इस लीला में कई चीजें टूटनी थीं और वो टूटीं भी।
एक बार अनंत श्री, बोधि माँ और कुछ मित्र लुंबिनी (नेपाल) के लिए जाने वाले थे मैं उस यात्रा का हिस्सा नहीं था पर अचानक किसी मित्र के न जाने के कारण मुझे मौका मिला और वो दिन था कि मैं अनंत श्री को कभी अपने से अलग नहीं मान पाया। पहली बार जब मैंने उनकी presence को महसूस किया था तो मैं कंपित भी था और डरा भी था पर अनंत श्री के असीम प्रेम ने मुझे हल्का कर दिया, गुरु शिष्यों के रग-रग से वाकिफ होते हैं मैं समझ गया था। लुंबिनी में अनंत श्री, बुद्ध पे कुछ बोल रहे थे और मैं recording कर रहा था, जब वो बोल रहे थे तो मैं इतना खो गया था कि रिकॉर्डिंग बटन on करना ही भूल गया था और बाद में पता चला कि video की recording हुई ही नहीं है, पर अनंत श्री ने प्रेमपूर्ण निर्लिप्तता से कहा कि कोई बात नहीं और अनंत श्री के इस ढंग से कहने ने मुझे पूरी तरह निर्भार कर दिया था। इस घटना ने मुझे कई बातें सोचने पर मजबूर कर दिया था जैसे कि हम लोग किसी भी बात को कितना ढोते हैं जिंदगी भर, लेकिन गुरु नहीं, क्योंकि गुरु वर्तमान है और हम ढोते हैं क्योंकि हम अतीत और भविष्य में डोलते रहते हैं इससे न जाने हम कितना लोगों को निंदित भी करते हैं और निंदित भी होते हैं , पर गुरु के सामने हम एकदम से कुछ और ही हो जाते हैं।
अनंत श्री का हमारी जिंदगी में होना एक इतनी बड़ी घटना है जिसका हमें अंदाजा भी नहीं है। जिस होने को हम भूल गए हैं वो होना हमारे सामने है लेकिन हम इतने अंधे हो चुके हैं कि हम देख ही नहीं पा रहे हैं। अनंत श्री के मौन में अनंत की प्रेमिल पुकार है जो लगातार हमें बुला रही है, पर हम सुन ही नहीं पा रहे हैं, ये परिदृश्य मेरे भीतर हमेशा उठता है और मुझे रुलाता भी बहुत है। अनंत श्री के जीवन जीने को गौर से जब हम देखते हैं तो हमें एक असली भक्त का पता चलता है, भक्त हम नहीं है जो पीछे चलते हैं, भक्त वो है जिसने सब कुछ को पूरा स्वीकार कर लिया है, जो एक असुरक्षा और अनिश्चितता में जीता है, जो बेफिक्र है, बेपरवाह है और आनंदमय है, तो इस अंतर्दृष्टि से देखा जाए तो वास्तविक भक्त तो अनंत श्री ही हैं जो अस्तित्व की समग्रता में लयबद्ध हैं। वो निरंतर हमें बुलाते हैं उस होने से रूबरू कराते हैं जो हम वास्तव में हैं। अनंत श्री के साथ हम चल पा रहे हैं, उन्हें देख और सुन पा रहे हैं, उनसे जुड़ पा रहें हैं ये बहुत ही दुर्लभ घटना है।