सद्गुरु का होना एक घाटी की तरह है. जितना ऊंचा शिखर होता है उतनी ही गहरी घाटी निर्मित हो जाती है. सद्गुरु दिव्यता और बोध के शिखर की तरह होते हैं और हमारे जगत में उनकी उपस्थिति करुणा की घाटी की तरह होती है.
इस घाटी की तरंगों में जब किसी के अंतरतम की प्यास की तरंगें प्रवेश करती हैं तब यह घाटी उन तरंगों में अपनी शान्ति की, करुणा की, बोध की, तृप्ति की तरंगों को मिला देती है. अपने होने की तरंगों को मौन की सुगंध में घोलकर, उन सारी तरंगों में यह घाटी मिलाती है, और तब वो तरंगें अपूर्व ढंग से समृद्ध होकर प्यासे अंतरतम में प्रवेश कर जाती हैं.
इस घाटी चेतना में जो कुछ भी प्रवेश करता है वह और समृद्ध होकर जीवन में बरस जाता है. चेतना की एक बूँद, इस घाटी में प्रवेश करती है और घाटी के समस्त सौन्दर्य और प्राणों से गुजरकर चेतना की विशाल नदी बन जाती है.
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अहोभाव सद्गुरु 💓🙏🏻
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